राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती कवि गोष्ठी के रूप में शहर के साहित्यकारों के द्वारा सोमवार को मनाई गई। साहित्यांगण एवं बुजुर्ग समाज के संयुक्त तत्वाधान में डॉ दिगंबर सिंह की अध्यक्षता में दीप जलाकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया। साथ ही राष्ट्रकवि दिनकर की तस्वीर पर पुष्प अर्पित किया किया गया। आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए जितेंद्र कुमार ने कहा कि पूर्णिया से दिनकर का गहरा लगाव था, उनकी पुत्री की ससुराल भी काझा बस्ती में है। दूसरी ओर प्राचार्य जनार्दन प्रसाद झा द्विज एवं डॉ लक्ष्मीनारायण सुधांशु उनका बड़ा ही आत्मीय और अंतरंग संबंध था। यही कारण था कि वे अक्सर पूर्णिया आया करते थे। वरिष्ठ साहित्यकार एवं बुजुर्ग समाज के अध्यक्ष भोलानाथ आलोक ने कहा कि दिनकर के काव्य में सिर्फ संघर्ष ही विद्यमान नही है, अपतिु विश्व मैत्री एवं मानवता के संरक्षण का स्वर भी काफी प्रखर रहा है। उन्होंने देश के किसान-मजदूरों एवं सामान्य जनों की पीड़ा को भी वाणी दी है।
वहीं कवि शिवनारायण शर्मा व्यथित ने कहा कि दिनकर की निगाह न सिर्फ देश की पराधीनता पर थी, बल्कि देश की दुर्दशा और बदहाली पर भी था। इस मौके पर रामनरेश भक्त ने कहा कि वे राष्ट्रीय संस्कृति और मानवतावाद के उद्गाता कवि थे। उन्होंने धर्म-सम्प्रदाय, नस्ल तथा जाति-वर्ग के स्तर पर निहित लघुता तथा संकीर्णता को समाप्त कर उदारता एवं सहृदयता कायम करने की कोशिश की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. निलाम्बर सिंह ने कहा कि वे कवि होने के साथ कुशल गद्यकार भी थे। संस्कृति के चार अध्याय उनकी अनुपम गद्यकृति है। दिनकर का जीवन अनेक उतार-चढ़ाव से भरा रहा, किंतु बादलों से घिरकर भी हमारा कवि हरदम मुस्कुराता रहा।